CTET Level -1 (23 June 2024)
Question 1:
निम्नलिखित में से कौन-सा पाठ्यपुस्तक के बारे में सही नहीं है ?
Question 2:
Which of the following statements are true for "Argumentation" in mathematics clam ?/
निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन गणितीय कक्षा में 'तर्क-वितर्क' के लिए सही है?
(A) It can be understood as a line of reasoning that intends to show or explain why a mathematical result is true / इसे तर्कों के एक क्रम की तरह समझा जा सकता है जो यह दर्शाता है या समझाता है कि एक गणितीय परिणाम सही क्यों है।
(B) A Mathematical argument might be a formal or informal proof / गणितीय तर्क- वितर्क एक औपचारिक या अनौपचारिक प्रमाण हो सकता है।
(C) It can also be a part of the Heuristic approach in mathematics education is important only for social science/ गणितीय शिक्षा में ह्यूरिस्टिक ( स्वतः शोध ) उपागम का हिस्सा भी हो सकता है
(D) It cannot be used for teaching mathematics as argumentation is important only for social science / गणित
शिक्षण में इसका उपयोग नहीं हो सकता है क्योंकि तर्क-वितर्क केवल सामाजिक - विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है
Choose the correct option / सही विकल्प का चयन कीजिए:
Question 3:
निर्देश : अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदाधारितप्रश्नानां विकल्पात्मकोत्तरेभ्यः समीचीनमुत्तरं चिनुत ।
व्याकरणसम्बन्धिदोषादिरहिता व्यवस्थित-क्रियाकारक- विभागसमन्विताया भाषा सा संस्कृतभाषेति कथ्यते । इयं हि भाषा सर्वदोषशून्या अस्ति, अतः देववाणी, गीर्वाण- भारती, अमरभाषा इत्यादिभिः शब्दैः व्यवह्रियते । भाषागतमुदारत्वं मार्दवं मनोज्ञत्वं चास्याः वैशिष्टयम् । सेयं संस्कृतभाषा जगतः सर्वासु भाषासु प्राचीनतमा, सर्वोत्कृष्ट - साहित्य- संयुक्ता च वर्तते । अनन्तानन्तवर्षेषु व्यपगतेष्वपि अस्या माधुर्यम्, उदारत्वं च नाद्यापि विकृतम् । पाश्चात्त्यदेशीया विचारशीलाः कीलहार्न मैक्समूलर- मैकडानाल्ड कीथादयः विद्वांसः संस्कृत भाषायाः प्रशंसामकुर्वन् । सर्वासामार्य-भाषाणामुत्पत्तिः अत एव बभूव । पुरा सर्वे जनाः संस्कृतभाषयैवाभाषन्त । अतः सर्वमपि प्राक्तनं साहित्यं संस्कृतभाषायामेव उपलभ्यते । सर्वे प्राचीनग्रन्थाः चत्वारो वेदाश्च संस्कृत भाषायामेव सन्ति । वेदेषु मानवकर्तव्याकर्तव्ययोः सम्यक् निर्धारणमस्ति । ततो वेदानां व्याख्यानभूता ब्राह्मणग्रन्थाः वर्तन्ते । तदनु अध्यात्मविषयप्रतिपादिका उपनिषदो विद्यन्ते, यासां गरिमा पाश्चात्त्यबहुज्ञैरपि गीयते । ततोऽस्माकं गौरवग्रन्थाः षड्दर्शनानि सन्ति। एषामद्यापि विश्वस्य साहित्ये महत्त्वं वर्तते । ततः श्रौतसूत्राणां गृह्यसूत्राणां वेदव्याख्यानभूतानां षडङ्गानां गणनास्ति । महर्षिवाल्मीकिरचितस्य रामायणस्य, महर्षि व्यासरचितस्य महाभारतस्य निर्माणमपूर्वघटनैव वर्तते विश्वसाहित्ये । तत्र दुर्लभस्य कवित्वस्य, नैसर्गिक- सौन्दर्यस्य, अध्यात्मज्ञानस्य नीतिशास्त्रस्य च दर्शनं जायते । ततो भासाश्वघोष - कालिदास - भवभूति - दण्डि - बाण- सुबन्धु-हर्षप्रभृतयो महाकाव्यो नाट्यकाराश्च समायान्ति, येषामुदयेन न केवलमार्यावर्तः, अपितु सकलमेतत् जगत् धन्यमात्मानं मन्यते । कवि वराणामेतेषां वर्णने विद्वांसोऽपि न क्षमाः श्रीमद् भगवतगीता, स्मृतिग्रन्थाः पुराणानि च संस्कृतसाहित्यस्य महात्म्यं प्रकटयन्ति ।
संस्कृतसाहित्यं भारतस्य गौरवमुद्धोषयति । समस्तं देशं च एकतासूत्रे बध्नाति तत् । अस्य साहित्यस्य प्रचारः प्रसारश्च नितान्तं लाभप्रदः ।
'नीतिशास्त्रस्य च दर्शनं जायते' इत्यत्र 'दर्शनम्' इत्यस्य व्युत्पत्तिरस्ति
Question 4:
Which of the following is not a characteristic of open-ended questions in mathematics?
निम्नलिखित में से कौन- सी गणित में खुले सिरे वाले प्रश्नों की विशेषता नहीं है?
Question 5:
Question 6:
EVS is based on which three principles of learning EVS ?
A. Learning as environment.
B. Learning about the environment.
C. Learning through environment.
D. Learning for environment.
पर्यावरण अध्ययन किन तीन पर्यावरण अध्ययन सीखने के सिद्धांतों पर आधारित है ?
A. पर्यावरण के रूप में सीखना ।
B. पर्यावरण के बारे में सीखना ।
C. पर्यावरण के माध्यम से सीखना ।
D. पर्यावरण के लिए सीखना ।
Question 7:
निर्देश निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही। सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए ।
गुरु-शिष्य परंपरा में शिष्य के साथ गुरु का नाम पहले आता है। यह अमुक गुरु का शिष्य है- ऐसा कहा जाता है। गुरु अपने एक-एक शब्द से शिष्य में अवतरित होता है। जो शिष्य पूरी तरह से अपने गुरू को समर्पित है, उसके जीवन में एक समय आता है, जब वह गुरू की आराधना और उपासना करते-करते गुरुमय हो जाता है। शिष्य की वृत्ति सद्गुरू में मिल जाती है। उनकी प्रत्येक चेष्टा में, हावभाव में, वाणी में गुरू का ही प्रतिबिंब नजर आता है। इतना ही नहीं, उसकी आकृति भी गुरू जैसी हो जाती है। कई की तो वाणी भी गुरु जैसी ही हो जाती है। वाणी, विचार, वृत्ति, वेशभूषा, सब में जब सद्गुरु अवतरित होते हैं तब यह नहीं पूछना पड़ता कि तुम्हारा गुरु कौन है? तब तो यह शिष्य को देखते ही पता चल जाता है । जब परमात्मा अवतरित होते हैं, तो पहले सुयोग्य माता-पिता की खोज करते हैं, उसी प्रकार सद्गुरू अवतरित होने के लिए होनहार शिष्य ढूँढ़ते हैं। गुरू अपने शिष्य से माँ से भी ज्यादा परंपरा के माध्यम से यह अविनाशी गुरुतत्व हमेशा शिष्य को प्रकाश देता रहता है।
'समर्पित' में प्रत्यय है-
Question 8:
निर्देश निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही। सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए ।
गुरु-शिष्य परंपरा में शिष्य के साथ गुरु का नाम पहले आता है। यह अमुक गुरु का शिष्य है- ऐसा कहा जाता है। गुरु अपने एक-एक शब्द से शिष्य में अवतरित होता है। जो शिष्य पूरी तरह से अपने गुरू को समर्पित है, उसके जीवन में एक समय आता है, जब वह गुरू की आराधना और उपासना करते-करते गुरुमय हो जाता है। शिष्य की वृत्ति सद्गुरू में मिल जाती है। उनकी प्रत्येक चेष्टा में, हावभाव में, वाणी में गुरू का ही प्रतिबिंब नजर आता है। इतना ही नहीं, उसकी आकृति भी गुरू जैसी हो जाती है। कई की तो वाणी भी गुरु जैसी ही हो जाती है। वाणी, विचार, वृत्ति, वेशभूषा, सब में जब सद्गुरु अवतरित होते हैं तब यह नहीं पूछना पड़ता कि तुम्हारा गुरु कौन है? तब तो यह शिष्य को देखते ही पता चल जाता है । जब परमात्मा अवतरित होते हैं, तो पहले सुयोग्य माता-पिता की खोज करते हैं, उसी प्रकार सद्गुरू अवतरित होने के लिए होनहार शिष्य ढूँढ़ते हैं। गुरू अपने शिष्य से माँ से भी ज्यादा परंपरा के माध्यम से यह अविनाशी गुरुतत्व हमेशा शिष्य को प्रकाश देता रहता है।
" शिष्य गुरु की आराधना और उपासना करते-करते गुरुमय हो जाता है ।" का आशय है।
Question 9:
In ___________ writing the student is given ample practice on one aspect of writing while other aspects remain fixed.
Question 10:
निर्देश निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही। सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए ।
गुरु-शिष्य परंपरा में शिष्य के साथ गुरु का नाम पहले आता है। यह अमुक गुरु का शिष्य है- ऐसा कहा जाता है। गुरु अपने एक-एक शब्द से शिष्य में अवतरित होता है। जो शिष्य पूरी तरह से अपने गुरू को समर्पित है, उसके जीवन में एक समय आता है, जब वह गुरू की आराधना और उपासना करते-करते गुरुमय हो जाता है। शिष्य की वृत्ति सद्गुरू में मिल जाती है। उनकी प्रत्येक चेष्टा में, हावभाव में, वाणी में गुरू का ही प्रतिबिंब नजर आता है। इतना ही नहीं, उसकी आकृति भी गुरू जैसी हो जाती है। कई की तो वाणी भी गुरु जैसी ही हो जाती है। वाणी, विचार, वृत्ति, वेशभूषा, सब में जब सद्गुरु अवतरित होते हैं तब यह नहीं पूछना पड़ता कि तुम्हारा गुरु कौन है? तब तो यह शिष्य को देखते ही पता चल जाता है । जब परमात्मा अवतरित होते हैं, तो पहले सुयोग्य माता-पिता की खोज करते हैं, उसी प्रकार सद्गुरू अवतरित होने के लिए होनहार शिष्य ढूँढ़ते हैं। गुरू अपने शिष्य से माँ से भी ज्यादा परंपरा के माध्यम से यह अविनाशी गुरुतत्व हमेशा शिष्य को प्रकाश देता रहता है।
किस प्रकार के शिष्य पर गुरू का प्रभाव अधिक दिखाई देता है ?