UP Police ASI (23 June 2024)

Question 1:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन- जन की जानी बात थी। मुत्युंजय जन- जन द्वारा 'धन्वंतरि' की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र  समस्त उपाधियों से विमुक्त 'भिक्षु' । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, जो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को । प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में। दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह - सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था । वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते - निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है- आत्मा का मृत्यु पर विजय । संघमित्र हँसकर कहते - देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं हैं। देह तो अपने आप में व्याधि है। तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से  छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है । वैद्यराज ने कहा मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ। पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते ।

देह-व्याधि के निराकरण के बारे में संघमित्र का क्या विचार था ?

  • संघमित्र शरीर को व्याधि-मुक्त मानते थे ।

  • संघमित्र के अनुसार देह-व्याधियों से मुक्ति संभव नहीं थी।

  • संघमित्र देह व्याधि से मुक्ति भगवान की शरण से मानते थे ।

  • संघमित्र जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास रखते थे ।

Question 2:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन- जन की जानी बात थी। मुत्युंजय जन- जन द्वारा 'धन्वंतरि' की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र  समस्त उपाधियों से विमुक्त 'भिक्षु' । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, जो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को । प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में। दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह - सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था । वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते - निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है- आत्मा का मृत्यु पर विजय । संघमित्र हँसकर कहते - देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं हैं। देह तो अपने आप में व्याधि है। तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से  छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है । वैद्यराज ने कहा मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ। पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते ।

'आत्मा की मृत्यु पर विजय ही मोक्ष है" ऐसा किसका मानना है?

 

  • चरक और सुश्रुत का

  • संघमित्र का

  • बौद्ध धर्म का

  • मृत्युंजय का

Question 3:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन- जन की जानी बात थी। मुत्युंजय जन- जन द्वारा 'धन्वंतरि' की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र  समस्त उपाधियों से विमुक्त 'भिक्षु' । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, जो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को । प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में। दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह - सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था । वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते - निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है- आत्मा का मृत्यु पर विजय । संघमित्र हँसकर कहते - देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं हैं। देह तो अपने आप में व्याधि है। तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से  छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है । वैद्यराज ने कहा मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ। पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते ।

व्याधि और सुयोग शब्दों में क्रमशः प्रयुक्त उपसर्ग हैं

  • व्या और सु

  • आधि और ओग

  • वि + आ और सु

  • वि और सु

Question 4:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन- जन की जानी बात थी। मुत्युंजय जन- जन द्वारा 'धन्वंतरि' की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र  समस्त उपाधियों से विमुक्त 'भिक्षु' । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, जो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को । प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में। दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह - सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था । वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते - निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है- आत्मा का मृत्यु पर विजय । संघमित्र हँसकर कहते - देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं हैं। देह तो अपने आप में व्याधि है। तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से  छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है । वैद्यराज ने कहा मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ। पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते ।

संघमित्र और मृत्यंजय के विषय में कौन सा विकल्प सही है ?

  • संघमित्र जीवन को निरोग बनाकर आनंदपूर्वक जीने व दीर्घायु रहकर उपभोग का आनंद उठाने के समर्थक थे, मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे ।

  • मृत्युंजय सादा जीवन जीते हुए निर्वाण प्राप्ति के समर्थक थे, संघमित्र जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास रखते थे ।

  • मित्र होते हुए भी उन दोनों के जीवन सिद्धांत विपरीत थे ।

  • संघमित्र और मृत्युंजय दोनों मित्र थे और उनके जीवन- सिद्धांत एक जैसे ही थे ।

Question 5:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन- जन की जानी बात थी। मुत्युंजय जन- जन द्वारा 'धन्वंतरि' की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र  समस्त उपाधियों से विमुक्त 'भिक्षु' । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, जो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को । प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में। दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह - सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था । वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते - निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है- आत्मा का मृत्यु पर विजय । संघमित्र हँसकर कहते - देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं हैं। देह तो अपने आप में व्याधि है। तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से  छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है । वैद्यराज ने कहा मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ। पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते ।

जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में किसका विश्वास था ?

  • मृत्युंजय का

  • संघमित्र का

  • पाटलिपुत्र की प्रजा का

  • पाटलिपुत्र के राजा का

Question 6:

Pattachitra style of painting is the oldest and most popular art of which of the following states?

चित्रकला की पट्टचित्र शैली निम्नलिखित में से किस राज्य की सबसे पुरानी और लोकप्रिय कला है? 

  • ओडिशा Odisha

  • बिहार Bihar

  • राजस्थान Rajasthan

  • आंध्र प्रदेश Andhra Pradesh   

Question 7:

Nabakalebara is a ritual in which the wooden idols of Lord Jagannath, Balabhadra, Subhadra and Sudarshan are regularly renovated. Where is the Nabakalebara Rath Yatra organized?

नवकलेवर एक अनुष्ठान है जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की काष्ठ प्रतिमाओं का नियमित नवीनीकरण किया जाता है। नवकलेवर रथ यात्रा का आयोजन कहां किया जाता है ? 

  • सोमनाथ Somnath

  • वृंदावन Vrindavan

  • मथुरा Mathura

  • पुरी Puri

Question 8:

Who painted the famous painting named 'The Last Supper'?

'द लास्ट सपर' नाम का प्रसिद्ध चित्र किसने चित्रित किया? 

  • माइकल एंजेलो Michelangelo

  • मोजार्ट Mozart

  • लियोनार्डो दा विंची Leonardo da Vinci

  • क्लाद मोने Claude Monet

Question 9:

The Vedas are considered to be the first literary record of the Indo-Aryan civilization. The names of the four Vedas included in it are Rigveda, Samaveda, Yajurveda and ______.

वेदों को इंडो-आर्यन सभ्यता का सर्वप्रथम साहित्यिक अभिलेख माना जाता है। इसमें शामिल चार वेदों के नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और ______ हैं। 

  • शिल्पवेद Shilpaveda

  • धनुर्वेद Dhanurveda

  • आयुर्वेद Ayurveda

  • अथर्ववेद Atharvaveda

Question 10:

Which of the following is the famous Shasyotsav dance of Bundelkhand region of Madhya Pradesh?

निम्नलिखित में से कौन सा मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र का प्रख्यात शस्योत्सव नृत्य है? 

  • छारबा Chharba

  • मारूनि Maruni

  • जवारा Jawara

  • धालो Dhallo

Scroll to Top
Today’s History – History of 03 August IBPS Clerk Vacancies – Notification Out IBPS Clerk Mains 2025 Notification – New Exam Pattern UP BEO Vacancy SSB Free Boot Camp – Rojgar With Ankit