Jharkhand Police Constable (16 June 2024)

Question 1:

यतीन्द्र मिश्र का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

  • 12 अप्रैल 1977 अयोध्या उत्तर प्रदेश

  • 12 अप्रैल 1970 मथुरा उत्तर प्रदेश

  • 20 मार्च 1960 अयोध्या उत्तर प्रदेश

  • 20 मार्च 1977 मथुरा उत्तर प्रदेश

Question 2:

मुझे किस प्रकार का सर्वनाम है ?

  • इनमें से कोई नहीं

  • अन्य पुरुष

  • उत्तम पुरुष

  • मध्यम पुरुष

Question 3:

'कोई आ रहा है- वाक्य में कौन-सा सर्वनाम है?

  • निश्चचयवाचक

  • अनिश्चयवाचक

  • निजवाचक

  • संबंधवाचक

Question 4:

संपद का विलोम -

  • सुखी 

  • विपद

  • इनमें से कोई नहीं । 

  • गाना

Question 5:

शहनाई की ध्वनि को कैसी ध्वनि कहा जाता है?

  • मेघ ध्वनि

  • मंगल ध्वनि

  • कर्ण प्रिय ध्वनि

  • सुमधुर ध्वनि

Question 6:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्न का सटीक उत्तर दीजिए:

साहित्यिक समन्वय से हमारा तात्पर्य साहित्य में प्रदर्शित सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उत्थान-पतन आदि विरोधी तथा विपरीत भावों के समीकरण तथा एक आलौकिक आनंद में उनके विलीन हो जाने में है। साहित्य के किसी अंश को लेकर देखिए, सर्वत्र यही समन्वय दिखाई देगा। भारतीय नाटकों में ही सुख और दुःख के प्रबल घात-प्रतिघात दिखाए गये हैं, पर सबका अवसान आनंद में ही किया गया है। इसका प्रधान कारण यह है कि भारतीयों का ध्येय सदा से जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके उसका उत्कर्ष बढ़ाने और उसे उन्नत बनाने का रहा है। वर्तमान स्थिति से उसका इतना संबंध नहीं है जितना भविष्य की संभाव्य उन्नति से है। हमारे यहाँ यूरोपीय ढंग के दुखांत नाटक इसीलिए दिखाई नहीं पड़ते हैं। यदि आजकल ऐसे नाटक दिखाई पड़ने लगे हैं, तो वे भारतीय आदर्श से दूर और यूरोपीय आदर्श के अनुकरण मात्र हैं।

भारतीय नाटकों में दिखाया गया है:

  • केवल सुख

  • केवल दुःख

  • सुख - दुःख का प्रबल प्रतिघात

  • सुख - दुःख का सहभाव

Question 7:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्न का सटीक उत्तर दीजिए:

साहित्यिक समन्वय से हमारा तात्पर्य साहित्य में प्रदर्शित सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उत्थान-पतन आदि विरोधी तथा विपरीत भावों के समीकरण तथा एक आलौकिक आनंद में उनके विलीन हो जाने में है। साहित्य के किसी अंश को लेकर देखिए, सर्वत्र यही समन्वय दिखाई देगा। भारतीय नाटकों में ही सुख और दुःख के प्रबल घात-प्रतिघात दिखाए गये हैं, पर सबका अवसान आनंद में ही किया गया है। इसका प्रधान कारण यह है कि भारतीयों का ध्येय सदा से जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके उसका उत्कर्ष बढ़ाने और उसे उन्नत बनाने का रहा है। वर्तमान स्थिति से उसका इतना संबंध नहीं है जितना भविष्य की संभाव्य उन्नति से है। हमारे यहाँ यूरोपीय ढंग के दुखांत नाटक इसीलिए दिखाई नहीं पड़ते हैं। यदि आजकल ऐसे नाटक दिखाई पड़ने लगे हैं, तो वे भारतीय आदर्श से दूर और यूरोपीय आदर्श के अनुकरण मात्र हैं।

भारतीयों का सदा से ध्येय रहा है:

  • जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके, उसका उत्कर्ष बढ़ाकर उसे उन्नत बनाना ।

  • जीवन का केवल आदर्श रूप उपस्थित करना ।

  • जीवन को उन्नत बनाना ।

  • जीवन का उत्कर्ष बढ़ाना।

Question 8:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्न का सटीक उत्तर दीजिए:

साहित्यिक समन्वय से हमारा तात्पर्य साहित्य में प्रदर्शित सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उत्थान-पतन आदि विरोधी तथा विपरीत भावों के समीकरण तथा एक आलौकिक आनंद में उनके विलीन हो जाने में है। साहित्य के किसी अंश को लेकर देखिए, सर्वत्र यही समन्वय दिखाई देगा। भारतीय नाटकों में ही सुख और दुःख के प्रबल घात-प्रतिघात दिखाए गये हैं, पर सबका अवसान आनंद में ही किया गया है। इसका प्रधान कारण यह है कि भारतीयों का ध्येय सदा से जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके उसका उत्कर्ष बढ़ाने और उसे उन्नत बनाने का रहा है। वर्तमान स्थिति से उसका इतना संबंध नहीं है जितना भविष्य की संभाव्य उन्नति से है। हमारे यहाँ यूरोपीय ढंग के दुखांत नाटक इसीलिए दिखाई नहीं पड़ते हैं। यदि आजकल ऐसे नाटक दिखाई पड़ने लगे हैं, तो वे भारतीय आदर्श से दूर और यूरोपीय आदर्श के अनुकरण मात्र हैं।

सुख-दुख के प्रबल प्रतिघात का अवसान भारतीय नाटकों में किया गया है:

  • दुख-सुखांत में

  • त्रासदी में

  • आनंद में

  • दुखांत में

Question 9:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्न का सटीक उत्तर दीजिए:

साहित्यिक समन्वय से हमारा तात्पर्य साहित्य में प्रदर्शित सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उत्थान-पतन आदि विरोधी तथा विपरीत भावों के समीकरण तथा एक आलौकिक आनंद में उनके विलीन हो जाने में है। साहित्य के किसी अंश को लेकर देखिए, सर्वत्र यही समन्वय दिखाई देगा। भारतीय नाटकों में ही सुख और दुःख के प्रबल घात-प्रतिघात दिखाए गये हैं, पर सबका अवसान आनंद में ही किया गया है। इसका प्रधान कारण यह है कि भारतीयों का ध्येय सदा से जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके उसका उत्कर्ष बढ़ाने और उसे उन्नत बनाने का रहा है। वर्तमान स्थिति से उसका इतना संबंध नहीं है जितना भविष्य की संभाव्य उन्नति से है। हमारे यहाँ यूरोपीय ढंग के दुखांत नाटक इसीलिए दिखाई नहीं पड़ते हैं। यदि आजकल ऐसे नाटक दिखाई पड़ने लगे हैं, तो वे भारतीय आदर्श से दूर और यूरोपीय आदर्श के अनुकरण मात्र हैं।

साहित्यिक समन्वय से अभिप्राय है:

  • विरोधी तथा विपरीत तत्वों के समीकरण

  • विरोधी तथा विपरीत तत्वों के समीकरण और अलौकिक आनंद में उनका विलीन होना

  • विरोधी तथ्यों का केवल आनंद में विलीन होना

  • विरोधी तत्वों का सामंजस्य

Question 10:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित प्रश्न का सटीक उत्तर दीजिए:

साहित्यिक समन्वय से हमारा तात्पर्य साहित्य में प्रदर्शित सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उत्थान-पतन आदि विरोधी तथा विपरीत भावों के समीकरण तथा एक आलौकिक आनंद में उनके विलीन हो जाने में है। साहित्य के किसी अंश को लेकर देखिए, सर्वत्र यही समन्वय दिखाई देगा। भारतीय नाटकों में ही सुख और दुःख के प्रबल घात-प्रतिघात दिखाए गये हैं, पर सबका अवसान आनंद में ही किया गया है। इसका प्रधान कारण यह है कि भारतीयों का ध्येय सदा से जीवन का आदर्श स्वरूप उपस्थित करके उसका उत्कर्ष बढ़ाने और उसे उन्नत बनाने का रहा है। वर्तमान स्थिति से उसका इतना संबंध नहीं है जितना भविष्य की संभाव्य उन्नति से है। हमारे यहाँ यूरोपीय ढंग के दुखांत नाटक इसीलिए दिखाई नहीं पड़ते हैं। यदि आजकल ऐसे नाटक दिखाई पड़ने लगे हैं, तो वे भारतीय आदर्श से दूर और यूरोपीय आदर्श के अनुकरण मात्र हैं।

हमारे यहाँ यूरोपीय ढंग के दुखांत नाटक दिखाई देने का कारण है:

  • यूरोपीय आदर्श का अनुकरण और भारतीय आदर्श से दूरी

  • भारतीयों की सोच में परिवर्तन

  • भारतीय आदर्श का त्याग

  • जीवन में दुखों का अंबार

Scroll to Top
Duniya Ka Sabse Bada Motivational Guru ? Sacchi Prerna Ki Kahani . MP Subedar / Steno Admit Card Out : Be Updated DRDO CEPTAM – 11 Eligibility : Kaun Apply Kar Sakta Hai ? KVS & NVS Vacancies Increased : Latest Recruitment Update Bihar Government Renames Three Departments : Official Update.