Jharkhand Police Constable (23 June 2024)

Question 1:

'चाँदनी चौक' में कौन-सी संज्ञा है? 

  • भाववाचक संज्ञा 

  • व्यक्तिवाचक संज्ञा 

  • द्रव्यवाचक संज्ञा

  • जातिवाचक संज्ञा 

Question 2:

निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, उस विकल्प का चयन करें जो दिए गए वाक्य के लिए वृत्ति के भेद का सबसे अच्छा विकल्प है। 

गृहकार्य करने में मेरी सहायता कीजिए । 

  • संदेहार्थ 

  • निश्चयार्थ 

  • संभावनार्थ 

  • विध्यर्थ 

Question 3:

जो क्रिया संज्ञा या विशेषण से बनती है उसे क्या कहते हैं? 

  • द्विकर्मक धातु 

  • मूल धातु 

  • नाम धातु 

  • संयुक्त क्रिया 

Question 4:

निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, उस विकल्प का चयन करें जो

भाववाचक संज्ञा का सही विकल्प नहीं है। 

  • आनंद 

  • कड़वाहट 

  • अंकित 

  • आवश्यकता 

Question 5:

तुम जाओ और अपने पिताजी से कहना किस प्रकार का वाक्य है -

  • उपर्युक्त में से कोई नहीं 

  • संयुक्त वाक्य 

  • सरल वाक्य 

  • मिश्र वाक्य 

Question 6:

निम्नलिखित शब्द में संधि-विच्छेद करते समय दिए गए विकल्पों में से सही रूप छाँटिए : 

वीरोचित 

  • वीर + उचित 

  • वीरा + चित 

  • वि + उचित 

  • वीर + औचित 

Question 7:

टुन्नू दुलारी के लिए क्या भेंट लाया था ? 

  • प्रेरणादायक पुस्तकें

  • गाँधी आश्रम में बनी खादी की धोती 

  • चरखा

  • सोने का हार

Question 8:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 
मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन-जन की जानी बात थी। मुत्युंजय जन-जन द्वारा 'धन्वंतरि' की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र समस्त उपाधियों से विमुक्त 'भिक्षु' । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, जो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को। प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में। दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह-सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था । वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते - निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है- आत्मा का मृत्यु पर विजय । संघमित्र हँसकर कहते - देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं हैं। देह तो अपने आप में व्याधि है । तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है । वैद्यराज ने कहा मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ। पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते।

व्याधि और सुयोग शब्दों में क्रमशः प्रयुक्त उपसर्ग हैं 

  • वि और सु 

  • व्या और सु 

  • वि + आ और सु 

  • आधि और ओग 

Question 9:

आपने बुलाया होता तो हम अवश्य आते।" अर्थ के आधार पर वाक्य भेद है- 

  • आज्ञावाचक वाक्य 

  • इच्छावाचक वाक्य

  • संदेहवाचक वाक्य 

  • संकेतवाचक वाक्य

Question 10:

Find the value of (919+9.019+0.919+9.0019).

(919+9.019+0.919+9.0019) का मान ज्ञात कीजिए।

  • 937.3999

  • 973.9939

  • 937.9399

  • 973.9399

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