Jharkhand Police Constable (23 June 2024)

Question 1:

'चाँदनी चौक' में कौन-सी संज्ञा है? 

  • जातिवाचक संज्ञा 

  • भाववाचक संज्ञा 

  • द्रव्यवाचक संज्ञा

  • व्यक्तिवाचक संज्ञा 

Question 2:

'जिस पत्तल में खाना, उसी पत्तल में छेद करना कहावत का अर्थ है 

  • कृतघ्न होना 

  • परोसे गये भोजन का निरादर करना 

  • मूर्खतापूर्ण कार्य करना 

  • अपने हाथों अपना ही नुकसान करना

Question 3:

तुम जाओ और अपने पिताजी से कहना किस प्रकार का वाक्य है -

  • संयुक्त वाक्य 

  • सरल वाक्य 

  • मिश्र वाक्य 

  • उपर्युक्त में से कोई नहीं 

Question 4:

Indian Standard Time (IST) is _______ ahead of Greenwich Mean Time (GMT).

भारतीय मानक समय (IST) ग्रीनविच माध्य समय (GMT) से _______ आगे हैं।

  • 6 घंटे, 15 मिनट / 6 hours, 15 minutes

  • 3 घंटे, 30 मिनट / 3 hours, 30 minutes

  • 5 घंटे, 10 मिनट / 5 hours, 10 minutes

  • 5 घंटे, 30 मिनट / 5 hours, 30 minutes

Question 5:

जिस क्रिया का फल कर्त्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े, उसे कौन-सी क्रिया कहते हैं? 

  • अकर्मक क्रिया 

  • सकर्मक क्रिया 

  • प्रेरणार्थक क्रिया 

  • पूर्वकालिक क्रिया 

Question 6:

दुक्कड़ किसे कहते है? 

  • तम्बूरे को 

  • मशकबीन को

  • शहनाई के साथ बजाए जाने वाले तबले जैसे बाजे को

  • झांझ को 

Question 7: Jharkhand Police Constable (23 June 2024) 2

  • 14 cm

  • 15 cm

  • 12 cm

  • 18 cm

Question 8: Jharkhand Police Constable (23 June 2024) 4

  • 15

  • 9

  • 5

  • 6

Question 9:

Where is the headquarters of State Bank of India (SBI) located?

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का मुख्यालय कहां स्थित है?

  • कोलकाता / Kolkata

  • मुंबई / Mumbai

  • नई दिल्ली / New Delhi

  • चेन्नई / Chennai

Question 10:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 

मृत्युंजय और संघमित्र की मित्रता पाटलिपुत्र के जन-जन की जानी बात थी। मुत्युंजय जन-जन द्वारा 'धन्वंतरि' की उपाधि से विभूषित वैद्य थे और संघमित्र समस्त उपाधियों से विमुक्त 'भिक्षु' । मृत्युंजय चरक और सुश्रुत को समर्पित थे, जो संघमित्र बुद्ध के संघ और धर्म को। प्रथम का जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास था तो द्वितीय का जीवन के निराकरण और निर्वाण में। दोनों ही दो विपरीत तटों के समान थे, फिर भी उनके मध्य बहने वाली स्नेह-सरिता उन्हें अभिन्न बनाए रखती थी। यह आश्चर्य है, जीवन के उपासक वैद्यराज को उस निर्वाण के लोभी के बिना चैन ही नहीं था, पर यह परम आश्चर्य था कि समस्त रोगों को मलों की तरह त्यागने में विश्वास रखने वाला भिक्षु भी वैद्यराज के मोह में फँस अपने निर्वाण को कठिन से कठिनतर बना रहा था । वैद्यराज अपनी वार्ता में संघमित्र से कहते - निर्वाण (मोक्ष) का अर्थ है- आत्मा का मृत्यु पर विजय । संघमित्र हँसकर कहते - देह द्वारा मृत्यु पर विजय मोक्ष नहीं हैं। देह तो अपने आप में व्याधि है । तुम देह की व्याधियों को दूर करके कष्टों से छुटकारा नहीं दिलाते, बल्कि कष्टों के लिए अधिक सुयोग जुटाते हो । देह व्याधि से मुक्ति तो भगवान की शरण में है । वैद्यराज ने कहा मैं तो देह को भगवान के समीप जीते ही बने रहने का माध्यम मानता हूँ। पर दृष्टियों का यह विरोध उनकी मित्रता के मार्ग में कभी बाधक नहीं हुआ। दोनों अपने कोमल हास और मोहक स्वर से अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते।

देह-व्याधि के निराकरण के बारे में संघमित्र का क्या विचार था ? 

  • संघमित्र जीवन की संपन्नता और दीर्घायुष्य में विश्वास रखते थे । 

  • संघमित्र देह व्याधि से मुक्ति भगवान की शरण से मानते थे । 

  • संघमित्र शरीर को व्याधि-मुक्त मानते थे । 

  • संघमित्र के अनुसार देह-व्याधियों से मुक्ति संभव नहीं थी। 

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