महाराष्ट्र के नागपुर प्रतिवर्ष 'बड़ग्या-मारबत' ('Bargya-Marbat') उत्सव का आयोजन होता है, यह करीब 145 वर्ष पुरानी परंपरा है| यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण माह के दूसरे दिन मनाया जाता है| इसमें विशाल काली एवं पीली मारबत (effigies) और विभिन्न विषयों पर आधारित बड़ग्या (Badgya) निकाली जाती हैं और अन्ततः उन्हें अग्नि को समर्पित कर नकारात्मकता का प्रतीकात्मक अंत किया जाता है| मारबत नामक पुतले (बांस, घास, कागज और कपड़े से बने), जो बुरी शक्तियों, नकारात्मकता और सामाजिक बुराइयों का प्रतीक हैं| काली मारबत की शुरुआत 1880 में हुई, जबकि पीली मारबत की शुरुआत 1884 में हुई| ऐतिहासिक वृत्तांतों के अनुसार, इस त्योहार की शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में हुई थी, जब नागपुर में हैजा और प्लेग (cholera and plague) जैसी महामारियाँ फैली हुई थीं| लोगों का मानना था कि ऐसी आपदाएँ राक्षसी शक्तियों या नकारात्मक ऊर्जाओं के कारण होती हैं|